Aalhadini

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The Train... beings death 23

     

    इंस्पेक्टर कदंब और नीरज को जैसे ही पता चला कि कमल नारायण जी की हालत दोबारा हार्ट अटैक आने से बिगड़ी.. तभी इंस्पेक्टर कदंब को समझ में आ गया था कि इस सब में हॉस्पिटल स्टाफ की लापरवाही थी। इस बात के लिए उन्होंने इनडायरेक्टली डॉक्टर को चेतावनी भी दे दी थी कि आगे से किसी भी मरीज के साथ किसी भी तरह की कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। डॉक्टर ने भी उनकी बात मान ली थी।
    
    
    जैसे ही सभी कमल नारायण जी के रूम से बाहर आने वाले थे.. कमल नारायण जी ने उन्हें रोक लिया था। डॉक्टर ने कमल नारायण जी का चेकअप किया और कमल नारायण जी से बात करने की इजाजत दे दी। जैसे ही इजाजत मिली नीरज ने कमल नारायण जी से सवाल किया, "आप तो कह रहे थे कि जो भी कुछ हुआ उसमें आपकी गलती थी! सब कुछ आप ही की वजह से हुआ था!  लेकिन आपने जहां तक हमें बताया उस हिसाब से तो आयाम द्वार बंद हो गया था। जब आयाम द्वार ही बंद हो गया तो जो भी कुछ हो रहा है उसमें आपकी क्या गलती?"
    
    
    तभी कमल नारायण ने धीरे से इंस्पेक्टर कदंब की तरफ देखते हुए कहा, "क्योंकि आयाम द्वार बंद ही नहीं हुआ था!"
    
    
    यह बात सुनते ही कदंब और नीरज दोनों यह चौक गए थे। नीरज उस समय पानी पीने के लिए ग्लास में पानी डाल रहा था.. कमल नारायण जी की बात सुनते ही नीरज के हाथ से पानी का ग्लास छूट गया और पूरे रूम में पानी बिखर गया। पानी के बिखरने से इंस्पेक्टर कदंब थोड़ा गुस्से में थे.. पर साथ में वह भी जानते थे कि इसमें नीरज की गलती नहीं थी। उसने बात ही ऐसी सुनी थी कि वह चौक गया और यह गलती हो गई।
    
    
    
    इंस्पेक्टर कदंब ने तुरंत ही कमल नारायण से पूछा, "लेकिन वह कैसे हो सकता है? आपने ही तो कहा था कि आपके आचार्य चतुरसेन ने अपनी मंत्र शक्ति से उन जानवरों को उसी आयाम में रोक दिया था और एक बार में आयाम द्वार 3 घंटे के लिए ही खुलता था। तो उससे ज्यादा के लिए आयाम द्वार कैसे खुला??"
    
    
    यह सुनते ही कमल नारायण भूतकाल में चले गए और उन्होंने आगे की कहानी सुनाना शुरू कर दिया।
    
    
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    जैसे ही समय पूरा हुआ आयाम द्वार अपने आप लुप्त होने लगा था। द्वार के गायब होते ही कमल नारायण ने एक राहत की सांस ली थी। कमल नारायण ने गौतम के पास जाकर कहा, "तुम चिंता मत करो गौतम..! आत्मा और वैदिक के साथ जो भी कुछ हुआ उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। तुम्हारी मंशा तो बिल्कुल ठीक थी। बस प्रभु को यह रास्ता ठीक नहीं लगा था इसीलिए उन्होंने आगे बढ़ने का रास्ता बंद करवा दिया।"
    
    
    गौतम ने हां में अपनी गर्दन हिलाई तो कमल नारायण ने आगे कहा, "चलो.. हमें गुरुदेव से क्षमा मांगनी चाहिए और साथ ही साथ उनका आभार भी व्यक्त करना चाहिए। उन्हीं के कारण वह विचित्र जीव धरती पर नहीं आ पाए और हमारे हाथों हुई उस भूलकर भयंकर परिणाम सामने आने से बच गया।"
    
    
    "हां..! तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो!" गौतम ने कहा और आचार्य की तरफ आगे बढ़ गया। आचार्य के पास पहुंचकर गौतम ने उनके पैर पकड़ लिए और रोते हुए कहा, "मुझे क्षमा कर दीजिए आचार्य..! मैंने बिना सोचे समझे जो कार्य किया है उसकी वजह से मुझे अपने दो मित्रों को खोना पड़ गया। उनकी जान मेरी वजह से गई है।"
    
    
    आचार्य चतुरसेन को भी समझ में आ रहा था कि इस सब में गौतम का कोई दोष नहीं था। ये तो होनी ही थी इसीलिए यह सब कुछ गौतम के हाथों हुआ। उन्होंने गौतम के सर पर हाथ रखते हुए कहा, "कोई बात नहीं गौतम! शायद होनी को यही मंजूर था। इसीलिए तुम अपने आप को दोष मत दो। जो भी कुछ हुआ उसमें तुम्हारे अकेले की गलती नहीं थी। तुम्हारे बाकी के तीनों मित्र भी उसने बराबर के साझेदार थे। तो जब कोई दुर्घटना हो गई तो उसका दोष तुम्हारा अकेले का कैसे हो सकता है?"
    
    
    गौतम अभी भी अपने आप को अपराधी महसूस कर रहा था। आचार्य चतुरसेन ने गौतम को काफी समझाया तब गौतम को आचार्य की बात समझ में आ गई थी। उसके बाद आचार्य ने आगे कहा, "काफी रात हो रही है.. जंगल में रुकना इस समय उचित नहीं होगा। इसीलिए हम लोग वापस गुरुकुल चलते हैं। बाकी की बातें हम गुरुकुल में ही करेंगे।"
    
    
    गौतम और कमल नारायण ने अपनी गर्दन हां में हिलाई और अपना सामान समेटने लगे। सारा सामान समेटने के बाद कमल नारायण और गौतम आचार्य चतुरसेन के साथ वापस जाने के लिए चल दिए।
    
    
    तभी कुछ-कुछ आवाज आना शुरू हो गई। वह आवाजें ऐसी थी.. जैसे कोई व्यक्ति घर के बाहर खड़ा हो और अंदर आने के लिए दरवाजा ठोक रहा हो। रह रह कर दरवाजा ठोकने की ध्वनि आने लगी थी। ऐसा लग रहा था कि ध्वनि एक विशेष लय में थी।
    
    
    गौतम ने असमंजस से आचार्य की तरफ देखते हुए पूछा, "आचार्य..! यह स्वर कैसा??"
    
    
    आचार्य को भी उस आवाज का स्रोत कहां था यह समझ में नहीं आया था? तो आचार्य ने भी कन्फ्यूजन से अपनी गर्दन यहां से वहां घुमाकर कुछ ढूंढने की कोशिश की और कहा, "हमें भी इस ध्वनि का स्रोत पता नहीं चल रहा? ना जाने यह स्वर कहां से आ रहे हैं? हो सकता है कि आसपास कोई गुप्त द्वार हो?"
    
    
    यह सुनते ही कमल नारायण और गौतम ने आचार्य के कहे अनुसार कोई गुप्त द्वार ढूंढना शुरू कर दिया। हर एक पेड़ का तना.. जमीन.. हर चीज अच्छे से देख ली थी.. लेकिन उस ध्वनि का स्रोत समझ में ही नहीं आ रहा था कि कहां था?
    
    
    थक हार कर आचार्य ने कहा, "छोड़ो..! इससे पहले कि बहुत ज्यादा देर हो.. हम लोगों को यहां से चलना चाहिए!"
    
    
    कमल नारायण और गौतम ने भरे मन से अपना बचा हुआ सामान दोबारा समेटा और आचार्य के पीछे पीछे चल दिए। थोड़ा आगे और बढ़ने पर ऐसा लगा कि एक विचित्र सा प्रकाश आसपास के माहौल में बिखरने लगा था। उस प्रकाश को देखकर ऐसे लग रहा था कि जैसे कोई अंधेरे में बल्ब को बंद चालू कर रहा था। 
    
    
    
    वह प्रकाश भी ऐसे ही लग रहा था.. जैसे 1 मिनट में पूरा माहौल रोशनी से भर गया हो और अगला ही पल उस रोशनी को अंधेरे से ढंककर पूरा वातावरण ही कालिमामय बना चुका था।
    
    
    वहाँ का माहौल किसी को भी डराने के लिए पर्याप्त था। कमल और गौतम दोनों ही दुबारा गुप्त द्वार को ढूंढने में लग गए.. जहाँ से ठोकने की आवाजें आ रही थी। आचार्य चतुरसेन को एक बहुत ही तीव्र नकारात्मकता का अनुभव होने लगा था.. जिसकी वजह से आचार्य के चेहरे पर परेशानी और घबराहट के भाव दिखने लगे थे।
    
    
    आचार्य ने कमल और गौतम को आवाज़ लगाते हुए कहा, "कमल..! गौतम..! जल्दी यहाँ आओ।"
    
    
    आचार्य की आवाज़ सुनते ही कमल और गौतम दौड़ते हुए आचार्य के पास पहुंचे। दोनों ने आचार्य को घबराया और परेशान देखते हुए पूछा, "क्या हुआ आचार्य..? आपने इस तरह अचानक से बुलाया?? हमें अभी वो गुप्त द्वार नहीं मिला है?"
    
    
    आचार्य ने हड़बड़ाकर कहा, "कमल तुम पूजन और हवन सामग्री एकत्र करो! और गौतम तुम यहाँ पर होने वाली हर एक छोटी से छोटी गतिविधि पर नज़र रखोगे। हर एक बात तुम्हारी जानकारी में होनी चाहिए। हम ध्यान कर के पता लगाते हैं कि यहाँ हो क्या रहा हैं?"
    
    
    आचार्य की बात सुनते ही कमल और गौतम ने असमंजस से एक दूसरे की तरफ देखते हुए आचार्य से सवाल किया, "आचार्य..! हुआ क्या है?? आप बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं?"
    
    
    "बात ही चिंता की है! हमें यहां एक तीव्र नकारात्मक शक्ति का आभास हो रहा है। वो क्या है उसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। हम यही पता लगाने के लिए ध्यान में जा रहे हैं। तुम दोनों अपने अपने काम को बिना किसी गलती के शीघ्र पूरा करो।" आचार्य चतुरसेन इतना कहकर ध्यान में चले गए।
    
    
    आचार्य की आज्ञा के अनुसार कमल नारायण सारी हवन और पूजन सामग्री इकट्टा करने लगा। गौतम ने भी आचार्य की बात मानते हुए चारों तरफ अपनी नजर घुमाते हुए हर एक छोटी से छोटी हलचल को भी ध्यान से देख परख रहा था।
    
    
    
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आचार्य ध्यान में थे.. उन्हें एक विचित्र सी धुएँ भरी जगह दिखाई दे रही थी।  वहाँ बहुत ही तेज सूर्य चमक रहा था। ऐसा लगता था मानो एक साथ सहस्त्र सूर्यों का प्रकाश और तेज वहाँ उतर आया था। ध्यान करने के कारण आचार्य का सूक्ष्म शरीर वहाँ पहुँच चुका था। आचार्य के सूक्ष्म शरीर को भी वहाँ के सहस्रों सूर्यों का प्रकाश नेत्र खोलने नहीं दे रहा था। साथ ही साथ वहाँ का ताप इतना अधिक था कि आचार्य के सूक्ष्म शरीर के साथ साथ उनका स्थूल शरीर भी उस ताप के प्रभाव को सहन नहीं कर पा रहा था। 
    
    
    आचार्य के शरीर से पसीना पानी की तरह बहने लगा था। जिसे देखकर कमल और गौतम दोनों ही घबरा गए थे।
    
    
    वहीं आचार्य का सूक्ष्म शरीर किसी ऐसे निर्जन और तप्त स्थान पर था जहां हज़ारों सूरज अपनी पूरी ऊर्जा के साथ चमक रहे थे। धूल और धुएँ के गुबार के बीच आचार्य ने उन्हीं विचित्र जीवों को देखा जिन्हें आचार्य ने अपनी मंत्र शक्ति से स्तंभित कर आयाम द्वार से धरती पर आने से रोक दिया था। वो जीव भी डरे सहमे से एक कोने में दुबक गए थे और एक और अनोखा और भयानक जीव धीरे-धीरे आगे बढ़ा चला आ रहा था। जो स्पष्ट तौर पर तो दिखाई नहीं दे रहा था पर जितना भी आचार्य उसे देख पा रहे थे वो कुछ विलक्षण ही था.. जिसके होने के बारे में किसी ने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी।
    
    
    उस स्थान पर एक और द्वार बना हुआ दिखाई दे रहा था.. जिसका प्रयोग कर कदाचित वो भयानक जीव किसी और आयाम किसी और ऐसे स्थान पर जाने वाला था जहाँ उसका होना प्रकृति और जीवन के लिए हानिकारक था। वह जीव चलता हुआ आगे बढ़ा और दरवाज़े में प्रवेश कर गया।
    
    
    उस भयानक जीव के दरवाज़े में प्रवेश करते ही एक भयंकर विस्फोट हुआ.. उस विस्फोट से कमल और गौतम जंगल में कई फुट दूर जाकर गिरे। कमल तो चोट लगने के कारण कुछ पलों के लिए बेहोश हो गया था। वहीं गौतम  भी विस्फोट से दूर जाकर एक बड़े से पेड़ के तने से जा टकराया।
    
    
    टक्कर काफी भयंकर थी और गौतम को बहुत ज्यादा चोटें नहीं आई थी पर कमल की स्थिति लगातार चिंता का कारण बनी रही थी। वहीँ यही जोरदार धमाका आचार्य जी को भी लगा था और  आचार्य वहीँ अपने आसन पर बैठे बैठे झटके के कारण दूर जा गिरे। 
    
    
    ऐसे अचानक गिरने के कारण आचार्य को गहरी चोटें आई थी.. जिससे उनका मंत्र जाप बीच में ही अधूरा रह गया था। अब आचार्य चाह कर भी सूक्ष्म शरीर द्वारा महसूस की गई चीज़ों का कुछ भी नहीं कर सकते थे।

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12 Comments

Punam verma

27-Mar-2022 06:21 PM

बहुत खूब । हर भाग एक से बढ़कर एक

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Inayat

03-Mar-2022 01:32 PM

बेहतरीन

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Aalhadini

04-Mar-2022 12:07 AM

शुक्रिया 🙏

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देविका रॉय

25-Feb-2022 05:49 PM

बहुत खूब कहानी अच्छा लिखती आप

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Aalhadini

27-Feb-2022 12:43 PM

धन्यवाद 🙏🏼

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